मैं शान्ति से
कुछ अल्फ़ाज़ व्यक्त करना चाहती हूँ
चीख़-चीखकर हार गई हूँ
मेरी कमी में कमी ढूँढना
आदत हो गई होगी तुम्हारी
शायद इसीलिए
मज़बूत होकर थक गई हूँ
मैंने सारी हिचक को
एक दुपट्टे में बाँधकर ओढ़ लिया है
मैंने आजकल
कल में होकर रहना छोड़ दिया है
फ़िलहाल
मेरी कहानियों को छोड़ो
अपनी कुछ सुनाओ
क्यूँकि अरसे बीत गए
मैंने कुछ नया नहीं कहा है
जब देखो तब
पुराना ही बीता जा रहा है
नया कुछ कहने को
अब बाकी ही क्या रहा है
उन दिनों ख़ामोशी से अवगत नहीं थी मैं
इन दिनों आवाज़ से रूठ गई हूँ मैं
चलो ठीक से हिसाब लगाते हैं
हमारी चुप्पी का
क्यूँकि माहौल बनाकर रख दिया
हमने शान्ति का🤐😑🙏
यूँ ही नहीं आसमानों में कैद होता कोई
बहुत दर्द सहने पड़ते हैं
यूँ ही नहीं शोर में ख़ामोश होता कोई।।
ज़िद ये नहीं है कि पुराने वक़्त में जाना है
आस ये लगी है कि मुझे कहीं तो जाना है