ऐ वक़्त!सुन
याद दिला दूँ तुझे
मैं वही हूँ
जिसके साथ तू भी कभी
मुस्कुराया था
झूमा था
तू हमारे साथ होता था
तो लोग भी कहते थे
वक़्त कितना अच्छा होगा
अब क्या फ़रेब कर दिया
तूने मेरे संग
तू तो इंसान नहीं था
जो बदल दिया तूने भी रंग
ऐ वक़्त!वक़्त देती हूँ आज तुझे
संभल जा वक़्त के संग
नहीं तो मेरी ज़िंदगी का तो पता नहीं
तू ज़रूर हो जाएगा धुँधला रंग
देख!अब और मत कर तंग
फ़िर से महफ़िलों को
सजाने का सोच रही हूँ
तू चाहे तो
आ सकता है मेरे संग
खामखा लोग
तुझे बुरा बोल-बोलकर
कोसा ही करेंगें
हमारा क्या है
हम तो दुनिया के लिए
कल भी बुरे थे
कल भी बुरे ही रहेंगें।
समय रह-गुज़रकर बीत ही जाता है
फ़िर भी दीवार की इस घड़ी को
हर कोई निहारा ही करता है
पता नहीं क्या कह जाती है
ये टिक-टिक
कि इंतज़ार भी गवारा लगता है।।
Nice
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Thanks
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