नन्हीं-सी जान को पलकों पर बिठा के
सजाया उसको गुड़िया मान के
रुलाया नहीं उसको पराया कहके
गोद में बिठाया उसको बोझ न समझके
पल-पल मुस्कुराया करती थी वो
पापा-पापा कहके
घर में एक प्यारा-सा कुत्ता पाला था उसने
पालतू जानवर मानके
दुनिया से सामना नहीं हुआ था उसका
क्यूँकि पापा जानते थे
यहाँ तो गीदड़ घूम रहे थे
जोकि एक दिन…
उनकी गुड़िया को नोच-नोचकर खा गए थे
पापा काँच की तरह टूटकर बिखर गए थे
जब भरी भीड़ में छोटी-सी गुड़िया के
कपड़े फ़टे देखे थे
उसी क्षण, पापा-बेटी के किस्से भी
ख़त्म हो गए थे।
झकझोर कर रख देता है ये समाज
जब कलियाँ आँगन में ही तोड़ दी जाती हैं
कोमल-कोमल-सी बेटियाँ
पैदा होने पर भी अफ़सोस करती हैं
क्या उम्र थी
जो नोच खा गए
बच्ची ही तो थी
क्यूँ उसका जीना दुस्वार कर गए
चैन से न जीने देते
मर गए तो भी मार गए
ढूँढती है उसकी आत्मा
अंतिम संस्कार के दौरान
मेरे अपने कहाँ गए
प्रकृति ने ऐसा भी क्या
परोस दिया धरती पर
औरत के नाम पर
कि आते-जाते
सब खा गए।।
Awesome 👌👌
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Thanks
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Beautiful feeling 😊
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Thanks
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मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है 😊
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सत्य दर्शाने की कोशिश की है
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जी हाँ 👍😊
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पापा और बेटी के रिश्ते को बखूबी बयां किया है। I wish your blog grow each and every day
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Thank you so much yr
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