मुझे आज उन शब्दों से बात करने को मन कर रहा है
जो मैंने कभी शायद ही कहे हों
लेकिन वो सब बोलकर कर भी क्या लेंगें
जो तुमने कभी सुनने ही न चाहे हों
गायब-सी हो गई हैं वो झलकियाँ
धुँधली मुस्कुराहट की
जो तुमने शायद ही कभी देखनी चाही हो
मुझे आज अपने को स्वीकार करना है
क्यूँकि शायद ही कभी तुमने हमें अपनाया हो
चला गया वो वक़्त भी रूठकर
तुम्हारा इंतज़ार करते-करते
क्यूँकि शायद ही कभी तुम्हें इसे बिताना गँवारा हो
चलते-चलते निगाह रखने को दिल चाहता है उन सड़कों पर
जहाँ शायद ही कभी तुमने नज़रें बिखेरी हों
अफ़सोस! हमें हर पल ये दिल उसी की ओर ढकेला करता है
जिसने शायद ही कभी हममें कोई ख़ासियत देखनी चाही हों।।
Fantastic
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Nice
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Thanks
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