टूटने-बिखरने को तैयार हूँ
बस!कुछ वजहों की तलाश में हूँ
मुझे आईने के आगे सिमटना नहीं आता
क्यूँकि वो लाचार भी सच के सिवा कुछ नहीं जानता
चार-चार बूँद इकट्ठा करके मुट्ठी बंद की थी
फ़िर भी उसने चाशनी हथेली में भर
हमारे पूरे बदन पर सहलाई थी
कितनी निकम्मी है ये कहानी भी
तेरी दीवानगी में,तूने जो चाहा वो कर गई
कभी हमसे हमारे हक़ के लफ़्ज़ पूछने तक न आई
और बड़ी आसानी से इठलाते हुए
कहीं कोने में जा छिप गई
फ़िर तभी;कुछ ही देर बाद चौखट पर आकर दरवाजा पीटने लगी
-मैं तेरी मोहब्बत
तुझे देती हूँ दस्तक
तो अब बता इतनी दूर से हूँ मैं आई
तू अब तक कहाँ रह गई
मैं लफ़्ज़ों को आँख मूँदकर
मुट्ठी में दबाकर नज़रअंदाज़ करने लगी
कि तभी पीछे से कोई तेज़ हवा के झोंके की तरह आया
तो मैं भी उसमें जाकर छुप गई
आँख खुली और देखा
आजकल तो आईने ने भी गद्दारी शुरू कर दी
और फ़िर तभी मैं भी पीछे हट गई
क्यूँकि मुझे असलियत जो पता चल गई।।
Awesome
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Thank you
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Great lines…. Amazing work 👏👏👏
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Thank you
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Really nice one
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Thank you so much
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