ज़िन्दगी ने ऐसा भी क्या खिलौना समझ लिया हमें
कि खेलती ही जा रही है
ऐसी भी क्या गुस्ताख़ी कर दी हमने
जिसकी सज़ा मिलती ही जा रही है
क्या चाहा था हमने
क्या देती जा रही है
ऐसी भी क्या नाराज़गी हमसे
जो मुँह मोड़ती जा रही है
ऐसी भी क्या उदासी उसकी
जो रुलाती ही जा रही है
ऐसी भी कौन-सी राह पर खड़ी है
जो हमें राहगीर बनाती ही जा रही है
काश!मुझे इस ज़िन्दगी के सारे राज़ पता चल जायें
फ़िर शुरू होगा अच्छा खेल
क्यूँकि तब हम भी शातिर खिलाड़ी होंगें
लेकिन करें भी तो क्या
हमें आया ही कहाँ आज तक खेलना
इसीलिए ही तो
इस बार भी कठपुतली बन-बनकर हार गए
और ज़िन्दगी से नाराज़ होकर
नए भवन में छिप गए।।
पता नहीं कब देगी दस्तक
हमारी अच्छी किस्मत…
इंतज़ार में बैठी हूँ आशा की किरणों के
इशारा कर हमें मिलवा देना
जहाँ कहीं भी तुम्हें भानू दिखे…
Wah……👍👏👏👏👏
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Shukriya
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बहुत सुन्दर /
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धन्यवाद सर🙏🙏
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Awesome
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Thanks
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शब्द बेजुबां कहाँ होते है मैडम 😊😊
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होते हैं कुछ ऐसे शब्द जो कहकर भी ख़ामोश हो जाते हैं
जैसे कुछ बातों को लोग बहुत आसानी से अपनी हथेली से दबा देते हैं
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🤔👌
जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर कोई समझा नही कोई जाना नहीं।
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जीवन जाना तब जब जाना पड़ा
हम तो वो मुसाफ़िर बन गए
जो अब तक है मंज़िल की तलाश में खड़ा।।
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वाह बहुत खूब।👌
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शुक्रिया
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