सड़क किनारे सोते देखा
जब अपनी मोहब्बत को
तब रोक नहीं पाया
मैं अपने अश्कों को
ढल गई थी उस लम्हें में मेरी सुबह
जब उसका नाम पुकारते ही
निकली थी दिल से आह
पहला कदम बढ़ाया
जैसे ही उसकी ओर
मेरे भीतर होने लगा
एक अजब-सा शोर
छा रहा था अंधेरा एकदम घोर
साँझ की किरणें ग्रहण लगने लगीं
एक इनकार से
मेरी सुबह ढलने लगी
जैसे ही उससे नज़रें मिलायीं
वो बिना कोई शिकायत किये
आँखों से ओझल हो गयीं
और सड़क पार करके
लोगों के सामने हाथ फ़ैलाके
दिन की रोटी माँगने लगी
आज मेरी मोहब्बत-फ़कीर कहलाने लगी
Awesome yrr 🤗🤗😍😍👌👌👌
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Thanks
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Wah🤩🤩
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Shukriya
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