मजबूरियाँ घेर रही हैं
तनहाईयाँ कुबूल रही हैं
सब जाते जा रहे हैं
हम जीते जा रहे हैं
पलटती नहीं
तक़दीर-ए-किताब
कहानियाँ क्यूँ हमें ख़रीद रही हैं
बहकाती हैं कई शामें
लेकिन हमसे तो
हकीकत ही रुबरू हो रही हैं
घूमती हैं इधर-उधर नज़रें
लेकिन धड़कनें
तुम्हीं पर आकर रुक रही हैं
नहीं कर सकते बयाँ अपना इश्क़
तभी दूरियाँ बढ़ रही हैं
मुमकिन नहीं है एक होना
तभी अजनबी कहकर
ये ज़िन्दगी मुकम्मल हो रही हैं
ठेस पहुँचाई हमने तुम्हें
फ़िर भी ये हथेलियाँ
तुम्हारी ख़ैरियत ही माँग रही हैं
हाँ!जानती हूँ
अब ज़रूरत नहीं है इन सबकी
फ़िर भी तुम्हारी खुशियाँ
हमें ज़रूरी लग रही हैं।।
यूँही कागज़ों में छिप-छिपकर साँसें लिया करता है मेरा बेज़ुबान दिल♥️♥️♥️♥️🙂🙂🙂🙂
👌👌👌 superb yrrr
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Thank you
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Great work 💓💓
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Thank you
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Wah
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Shukriya
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